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गजनवी वंश तथा तुर्कों का भारत में आक्रमण




     इस्लाम  धर्म  के अनुयायियों में से भारत में सर्वप्रथम प्रवेश करने वाले अरब थे अरब सिंध पर अधिकार करने में सफल रहे परन्तु उनकी सत्ता स्थाई नहीं थी वे इस्लाम तथा भारत के बीच आरम्भिक संपर्क कर पाए किन्तु भारत में मुस्लिमो की सत्ता की स्थापना का श्रेय तुर्कों को जाता है
  
                       अल्पतगीन 

     अल्पतगीन बुखारा के समानी शासक अब्दुल मालिक का एक तुर्क दास था वह असाधारण योग्यता का स्वामी था अपने साहस और परिश्रम के बल पर हजीब उल हज्जाब के पद पर नियुक्त हुआ 962 ईसवी में अब्दुल मालिक की मृत्यु के बाद उसके भाई और चाचा के मध्य उत्तराधिकार के लिए युद्ध आरम्भ हो गया अल्पतगीन ने चाचा का समर्थन किया परन्तु अब्दुल अलिक का भाई मंसूर सिंहासन प्राप्त करने में सफल रहा| भावी दंड के भय से अल्पतगीन ने गजनी की ओर प्रस्थान किया तथा वही अपनी स्थिति मजबूत कार गजनवी वंश की स्थापना की| गजनी वंश ईरान की एक शाखा थी अरब आक्रमण के समय इस वंश के शासक तुर्किस्तान चले गए वहां वे तुर्कों से इतना मिल जुल गए की उनके वंशज तुर्क कहलाने लगे |  अल्पतगीन ने गजनी को अपनी राजधानी बनाया  गजनवी वंश का अन्य नाम यामिनी वंश भी है इस समय भारत के उत्तर पश्चिमी में हिन्दुशाही राजवंश का राज्य था इसका विस्तार हिन्दुकुश पर्वत माला तक था काबुल भी उसके अधिकार में था अतः गजनी और हिन्दुशाही राजवंश की सीमाए एक दूसरे से टकराने लगी फलस्वरूप युद्ध होना अवश्यम्भावी था  963 ईसवी में अल्पतगीन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र इस्हाक उसका उत्तराधिकारी बना इसने केवल तीन वर्ष तक शासन किया इस्हाक की मृत्यु के बाद इसका सेनापति बलक्त्गीन गद्दी पर बैठा परन्तु 972 ईसवी में इसकी भी मृत्यु हो गयी इसके बाद पिराई गद्दी पर बैठा यह अल्पतगीन का गुलाम था यह एक अयोग्य शासक था ९७७ ईसवी में पिराई को हटाकर सुबुक्त्गीन गद्दी पर बैठा |
                         सुबुक्त्गीन   


सुबुक्त्गीन अल्पतगीन का गुलाम था परन्तु बाद में उसका दामाद बन गया नासिर हाजी नामक एक व्यापारी उसे तुर्किस्तान से बुखारा लाया था जहाँ उसे अल्पतगीन ने खरीदा वह बुद्धिमान व परिश्रमी था अपने परिश्रम के बल पर एक के बाद एक उच्च पद प्राप्त किया अल्पतगीन ने उसे अमीर उल उमरा की उपाधि दी थी |  977 ईसवी में गद्दी पर बैठने के बाद उसने आक्रमणों से अपना जीवन आरम्भ किया सुबुक्त्गीन के समय में गजनी और हिन्दुशाही राज्य का लम्बा संघर्ष आरभ हुआ जो सुलतान महमूद के समय तक चलता रहा और अंत में हिन्दू शाही राज्य का अंत हो गया शक्ति ग्रहण करने के बाद सुबुक्त्गीन ने उत्तर भारत की ओर कदम बढाया उस समय शाही वंश के राजा जयपाल के राज्य की सीमाए सरहिंद से लगमान तथा कश्मीर से मुल्तान तक विस्तृत थी  987 ईसवी में सुबुक्त्गीन ने प्रथम बार भारत की सीमा पर आक्रमण किया तथा हिन्दुशाही राज्य के कई किलों और नगरो को विजित कार लिया जयपाल यह सहन ना कर सका और उसने युद्ध करने का निश्चय किया गजनी और लगमान के पास दोनों के मध्य युद्ध हुआ परन्तु इस बीच हिमवर्षा ने जयपाल की सेना को छिन्न भिन्न कार दिया इसलिए उसे संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा जयपाल ने संधि में 10 लाख दरहम 50 हाथी कुछ नगर तथा कुछ किले देना स्वीकार किया  इस प्रकार सुबुक्त्गीन ने सर्वप्रथम आक्रमण किया था 

             सुबुक्त्गीन की मृत्यु 999 ईसवी को हो गयी 


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