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mahmud of ghazni

महमूद गजनवी  सुबुक्त्गीन का पुत्र था इसके छोटे भाई का नाम इस्माइल था सुबुक्तगीन इस्माइल से अधिक प्रेम करता था इसलिए इसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था किन्तु महमूद ने इसे बंदी  कर गद्दी प्राप्त की 

प्रारंभिक जीवन 


महमूद गजनवी का जन्म 1 नवम्बर 1172 ईसवी को हुआ उसकी माता गजनी के पास जबुलिस्तान की एक धनवान की कन्या थी इसलिए महमूद को जबुली का महूद भी कहा जाता है  27 वर्ष की उम्र में वह अपने पिता के राज्य स्वामी बना  वह आजम का प्रथम सुलतान माना जाता है 

तारीखे गुजीदा के अनुसार  सीस्ताना के राजा खल्फ बिन अहमद को हारने के बाद सुलतान की पदवी धारण की 
वह सुलतान की पदवी धारण करने वाला पहला शासक था

खलीफा ने उसे यामीन उद दौला तथा अमीन उल मिल्लत की उपाधि से विभूषित किया इसी अवसर पर महमूद ने भारत पर प्रत्येक वर्ष आक्रमण करने की शपथ ली थी

                           महमूद गजनवी के आक्रमण 

महमूद गजनवी ने भारत पर 1000  से 1027 के बीच 17 बार आक्रमण किये 

                                 प्रथम आक्रमण (1000)

महमूद गजनवी ने प्रथम आक्रमण  1000  ईसवी में सीमावर्ती नगरो पर किया अधिकार करने के बाद वह वापस गजनी लौट गया 


                                 द्वितीय आक्रमण (1001)

महमूद गजनवी ने दूसरा आक्रमण1001 ईसवी में हिन्दुशाही राज्य पर किया उस समय हिन्दुशाही वंश का राजा जयपाल था उसने पेशावर के निकट महमूद गजनवी का मुकाबला किया किन्तु पराजित हुआ अंत में महमूद गजनवी ने 25 हाथी तथा 250000 दीनार लेकर जयपाल को मुक्त कर दिया जयपाल ने स्वयं आत्महत्या कर ली अतः उसका पुत्र आनंदपाल गद्दी पर बैठा 


                                   तीसरा आक्रमण (1004)

तीसरा आक्रमण उसने राजा बजरा पर 1004 ईसवी में किया क्यों  की उसने जयपाल के विरुद्ध सैनिक सहायता नहीं दी थी बजरा पराजित होता है और भाग जाता है 

                                                  

                                     चौथा आक्रमण (1005)


चौथा आक्रमण महमूद ने मुल्तान में किया उस समय वहां का शासक फतह दाउद था उसने गजनवी के आक्रमण से बचने के लिए आनंदपाल से सहायता मांगी आनंदपाल और गजनवी का भेरा के निकट युद्ध हुआ किन्तु आनंदपाल पराजित हुआ फतह दाऊद  ने आत्मसमर्पण कर दिया महमूद गजनवी ने वापस जाते समय आनंदपाल के पुत्र सुखपाल को मुल्तान का शासक नियुक्त किया सुखपाल ने इस्लाम धर्म भी अपना लिया

                                      पांचवा आक्रमण (1006)


पांचवा आक्रमण महमूद गजनवी ने सुखपाल को दंड देने के लिए किया क्यों की सुखपाल ने इस्लाम धर्म को त्याग दिया था  उसने सुखपाल को पराजित कर उसे बंदी गृह में डाल दिया


                                      छठवां आक्रमण (1008)

महमूद का छठा आक्रमण आनंदपाल के विरुद्ध  था आनंदपाल ने महमूद के आक्रमण के लिए  उज्जैन के परमार , ग्वालियर के कच्छवाहा , कालिंजर के कालचुरी , कन्नौज के राठौर तथा दिल्ली और अजमेर के चौहान राजाओं का एक संघ बनाया पंजाब के खोखर लोगो ने भी आनंदपाल की सहायता की इस प्रकार आनंपाल ने एक विशाल सेना एकत्र कर ली  सिन्धु नदी के किनारे पेशावर के निकट एक निर्णायक युद्ध हुआ 
30000 खोखरो ने ऐसा प्रहार किया की महमूद गजनवी की सेना विचलित होने लगी किन्तु दुर्भाग्य से महमूद की सेना द्वारा छोड़ी गयी अलकतरे की अग्निज्वाला से भयभीत होकर आनंदपाल का हाथी मैदान से भाग निकला जिससे आनंदपाल की सेना अस्त व्यस्त होकर भागने लगी इस प्रकार महमूद गजनवी विजयी हुआ 

                                         सातवाँ आक्रमण (1009)

सातवाँ आक्रमण कांगड़ा के पहाड़ी प्रदेश नागरकोट पर किया वहां किसी ने महमूद का सामना नहीं किया हिन्दुओ ने वहां बहुत सारा धन एकत्र कर रखा था  इसलिए गजनवी को यहाँ से अपार धन की प्राप्ति हुई               फ़रिश्ता केअनुसार , महमूद 700000 स्वर्ण दीनार , 700 मन चांदी के पात्र , 200 मन शुद्ध स्वर्ण मुद्रए , 2000 मन अपरिष्कृत रजत तथा 20 मन पन्ने , हीरे आदि बहुमूल्य मणिया लेकर भारत से लौटा 

                                         आठवाँ आक्रमण (1010)

आठवाँ आक्रमण उसने पुनः मुल्तान पर किया वहां के विद्रोही शासक दाऊद को बंदी बना लिया 

                                        नौवां आक्रमण (1011-1012)

नवां आक्रमण थानेश्वर पर किया वहां के चक्रस्वामी मंदिर को लूटा मार्ग में डेरा के शासक ने रोकने का प्रयास किया किन्तु असफल रहा 

                                         दसवां आक्रमण (1012)

आनंदपाल की मृत्यु के बाद उसका पुत्र त्रिलोचनपाल गद्दी पर बैठा त्रिलोचन पाल को भी गजनवी के आक्रमण का सामना करना पड़ा तोषी नदी के किनारे गजनवी और त्रिलोचन के मध्य युद्ध हुआ जिसमे गजनवी विजयी हुआ 

                                       ग्यारहवां आक्रमण (1015-1016)

महमूद गजनवी ने कश्मीर में प्रवेश करने का प्रयास किया परन्तु भौगोलिक बाधाओं के कारण वह लोह्कोट से आगे नहीं बढ़ सका 

                                        बारहवां आक्रमण (1018)

महमूद गजनवी पहली बार गंगा नदी घाटी में प्रवेश किया उसने महावन मथुरा तथा वृन्दावन पर आक्रमण कर वहां से अपार धन लूटा 

                                         तेरहवां आक्रमण 

वृन्दावन को लूटने के बाद उसने कन्नौज पर आक्रमण किया उस समय वहां गुर्जर प्रतिहार के अंतिम शासक राज्यपाल का शासन था राज्यपाल भयभीत होकर बिना युद्ध किये ही भाग गया गजनवी ने कन्नौज को खूब लूटा 

                                        चौदहवाँ आक्रमण (1019-1020)

महमूद गजनवी ने यह आक्रमण चंदेल राजा विद्याधर को दण्डित करने के लिए किया था क्यों की विद्याधर ने राज्यपाल को दण्डित किया यहा क्यों की राज्यपाल बिना युद्ध किये ही भाग निकला था महमूद गजनवी ने विद्याधर पर आक्रमण किया विद्याधर भी एक विशाल सेना के साथ युद्ध के लिए आया किन्तु शाम तक विद्याधर की सेना के एक भाग की पराजय हुई जिससे विद्याधर साहस खो बैठा और रात में चुपके से भाग निकला   महमूद गजनवी ने सम्पूर्ण राज्य में लूटमार की तथा बहुत सी संपत्ति लेकर वापस लौट गया 

                                        पन्द्रहवां आक्रमण (1021-22)

गजनवी पुनः भारत आया तथा पंजाब में प्रवेश किया इस बार उसने पंजाब का प्रशासन अपने हाथ में लेने का निश्चय किया पंजाब में प्रत्यछ शासन स्थापित करने का महमूद का उद्देश्य दूर स्थित प्रान्तों की विजय के लिए भारत में एक सैनिक केंद्र की स्थापना था इसके लिए पंजाब का इलाका उपयुक्त था महमूद ने दिल्लीवाला नाम से सिक्के प्रचलित किये जिसका वजन 56 ग्रेन था महमूद गजनवी ने आरियारुक को पंजाब का गवर्नर नियुक्त किया था 

                                        सोलहवां आक्रमण (1025-26)

महमूद गजनवी ने एक विशाल सेना लेकर सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया गजनवी का यह सबसे प्रसिद्ध अभियान था यह एक शिव मंदिर था जिसमे अत्यधिक धन संचित था जो महमूद गजनवी के आक्रमण का मुख्य कारण था उसने मुल्तान के मार्ग से काठियावाड़ में प्रवेश किया इस समय यहाँ का शासक भीमदेव था जो बिना युद्ध किये ही भाग गया था इसके बाद वह सोमनाथ मंदिर तक पहुंचा जहां उसे अपार धन की प्राप्ति हुई 
जब वह धन लेकर गजनी  वापस जा  रहा था तब मार्ग में जाटो ने उसे बहुत हानि पहुचाई थी परन्तु वह गजनी लौटने में सफल रहा था  

                                          सत्रहवां आक्रमण (1027)

महमूद गजनवी का यह अंतिम आक्रमण था जो की जाटो के खिलाफ था क्यों की उन्होंने महमूद गजनवी को गजनी लौटते समय हानि पहुचाई थी 

इसके बाद सन 1030 को महमूद गजनवी की मृत्यु हो गयी 





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